निर्भय
तुमने बहुत सहा ,उन्होंने कुछ न कहा
तुम चुप चाप कराहती रही ,यहाँ लाठियां बरसती रहीं
तुम सदा के लिए सो गयी ,पर जगा कर गयी हम सबको
छोड़ गयी इन आँखों में सैलाब,शर्म, गुस्सा और दधकती आग
त्राहि त्राहि सब ओर,यह कैसा समाज, ये कैसा समय
तुम्हारा बलिदान अमूल्य, पुकारता निर्भय, निर्भय
- मीनाक्षी ( 29 दिसम्बर , 2012 )
Comments
Post a Comment