नक़्शे
इक उम्र खर्च हो गई
मैं वो नक्शा ढूँढती रही
तुझ तक पहुँचने का
तेरा दीदार पाने का
तू मुस्कुरा कर रोज़ मिलता रहा मुझे
उन नन्ही किलकारियों में ,उन बेपरवाह खुमारियों में
तू सामने हँसता रहा , मैं ऑंखें मूँद कर सो गई
मंज़िल ए मक़सूद भूल कर बस रास्तों में खो गई
- मीनाक्षी ( 24 जनवरी , 2013 )
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