ना आना फिर इस देश लाडो पहले संजोए थे मैंने हज़ार सपने,आई थी जब तुम मेरी कोख से बाहर तेरी वो पहली रुलाई भूल नहीं पाती हूँ , बस मंद मंद मुस्काती हूँ बनना है तुम्हें इक डॉक्टर , मानव और समाज की सेवा को रखा है इक लाल जोड़ा , तुम्हे दुल्हन सा सजा देखने को रोज़ तेरा माथा चूम कर दुलारी, मैं तुम पर बलिहारी जाती हूँ तेरी वो पहली रुलाई भूल नहीं पाती हूँ, बस मंद मंद मुस्काती हूँ अब अब सांस तो लेती हूँ मैं लाडो, बस रो ही नहीं पाती हूँ सोचती हूँ उस काली भयावह रात को , सिहर कर भूल जाना चाहती हूँ नहीं,शायद यह सच नहीं, बस एक बुरा सपना था कि तड्पी थीं तुम उस रात एक अदद चादर को जो ढक सकती मेरी दुलारी की, लहुलुहान काया को और आत्मा को तुम तभी बस में मर जातीं तो अच्छा होता की यूँ जलते ज़ख्मों से यूँ ना सामना होता अब तुम्हारी आखिरी सिसकी को भूल नहीं पाती हूँ, मैं ज़िंदा हूँ बस रो ही नहीं पाती हूँ मैं तुम्हारीं क्षमाप्रार्थी हूँ इस माँ की उजड़ी कोख़, की है मेरी निर्भया को गुहार ना आना फिर इस देश लाडो , ना आना फिर इस देश लाडो - मीनाक्षी ( एक माँ ) जनव...