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Showing posts from January, 2013

Nakshey

नक़्शे इक उम्र  खर्च हो गई मैं वो नक्शा ढूँढती रही तुझ तक पहुँचने का तेरा दीदार पाने का तू मुस्कुरा कर रोज़ मिलता रहा मुझे उन नन्ही किलकारियों में ,उन बेपरवाह खुमारियों में तू सामने हँसता रहा , मैं ऑंखें मूँद कर सो गई मंज़िल ए मक़सूद  भूल कर बस रास्तों में खो गई - मीनाक्षी ( 24 जनवरी , 2013 )

Are You Working ?

Are You Working? ......In any casual gathering, party, meeting, the inevitable question hits me sometimes like a lightening instantly after a name exchange or so in few secs and sometimes it slithers like a serpent after a chat of few minutes of introduction etc.….And now when I get attacked, I am prepared,  I start with my historical background to earn some respect for my present status of being just a housewife and gradually declare my current status…. So are you working? A woman mostly befitting the 'working' criteria asks! Oh yes, more than ever! I am working 200%....Although I have worked for 10 years in IT but now as a mom of twins I am working more than I have ever worked and please note that there is pure heartfelt joy in this current work. With no complaints and lot of love as remuneration. What about you? Are you working? I usually ask to be courteous and feed the ego.. I am an investment banker, a program manager etc…and the answer comes with a proud po...

ना आना फिर इस देश लाडो

ना आना फिर इस देश लाडो पहले  संजोए थे मैंने हज़ार सपने,आई थी जब तुम मेरी कोख से बाहर  तेरी वो पहली रुलाई भूल नहीं पाती हूँ , बस मंद मंद मुस्काती हूँ  बनना है तुम्हें इक डॉक्टर , मानव और समाज की सेवा को  रखा है इक लाल जोड़ा , तुम्हे दुल्हन सा सजा देखने को  रोज़ तेरा माथा चूम कर दुलारी, मैं तुम पर बलिहारी जाती हूँ  तेरी वो पहली रुलाई भूल नहीं पाती हूँ, बस मंद मंद मुस्काती हूँ  अब अब सांस तो लेती हूँ मैं लाडो, बस रो ही नहीं पाती हूँ सोचती हूँ उस काली भयावह रात को , सिहर कर भूल जाना चाहती हूँ नहीं,शायद यह सच नहीं, बस एक बुरा सपना था कि तड्पी थीं तुम उस रात एक अदद चादर को जो ढक सकती मेरी दुलारी की, लहुलुहान काया को और आत्मा को तुम तभी बस में मर जातीं तो अच्छा होता की यूँ जलते ज़ख्मों से यूँ ना सामना होता अब तुम्हारी आखिरी सिसकी को भूल नहीं पाती हूँ, मैं ज़िंदा हूँ बस रो ही नहीं पाती हूँ मैं तुम्हारीं क्षमाप्रार्थी हूँ इस माँ की उजड़ी कोख़, की है मेरी निर्भया को गुहार ना आना फिर इस देश लाडो , ना आना फिर इस देश लाडो - मीनाक्षी ( एक माँ ) जनव...